Tuesday 16 July 2013

सुप्रीम कोर्ट : मुबंई सहित पूरे महाराष्ट्र में खुलेंगे डांस बार

सुप्रीम कोर्ट पूरे महाराष्ट्र में डांस बार को फिर से खोलने की मंजूरी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए डांस बार को फिर से खोलने की मंजूरी दे दी है। गौरतलब है कि साल 2005 में महाराष्ट्र सरकार ने डांस बार पर रोक लगा दी थी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर से डांस बार खुलने का रास्ता साफ हो गया है। अगस्त 2005 में डांस बार पर सरकार ने पाबंदी लगा दी थी।
महाराष्ट्र के तात्कालीन उप मुख्यमंत्री आर. आर. पाटिल ने राज्य के सभी डांस बारों पर पाबंदी लगा दी थी। हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सरकारी पाबंदी को निरस्त कर दिया था, लेकिन उस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जिस पर आज फैसला सुप्रीम कोर्ट सुनाया। पाटिल ने राज्य के सभी होटलों, बीयर बार और परमिट रूम में डांस पर पाबंदी लगा दी थी।
पाटिल की दलील थी कि डांस बार के लिए लड़कियों की तस्करी की जाती है। डांस बार के मालिक लड़कियों का आर्थिक और शारीरिक शोषण करते हैं। इससे देह व्यापार को बढ़ावा मिलता है। डांस बार पर पाबंदी लगाने के राज्य सरकार के फैसले के बाद डांस बार में काम करने वाली हजारों महिलाएं और कर्मचारी बेरोजगार हो गए थे। उन्होंने इस फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी। 12 अप्रैल 2006 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बार डांसरों के हक में फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के फैसले को गैरकानूनी ठहराते हुए कहा कि इस फैसले से संविधान के अनुच्छेद 14 और 19-1 (G) का उल्लंघन होता है। इस तरह की पाबंदी, होटल मालिकों और डांसरों के व्यवसाय करने की आजादी को रोकता है जो कि उनका मूलभूत अधिकार है।
महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। पाबंदी के बाद करीब 75 हजार बार बालाएं बेरोजगार हो गईं थीं। इंडियन होटेल एंड रेस्टुरेंट एसोसिएशन, के लीगल चेयरमैन अनिल गायकवाड के मुताबिक वो इस फैसले से बहुत खुश हैं। उन्होंने बताया कि हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे। डांस बार बंद होने से बार डांसर्स गलत कामों में जाने के लिए मजबूर हो गईं थीं।

मालूम हो कि पुरे महाराष्ट्र में 700 डांस बार है।

Sunday 14 July 2013

टेलीग्राम का तार आज के बाद हमेशा के लिए बंद

भारत के दूरदराज के इलाकों को 160 वर्षों से अधिक समय तक एक-दूसरे से जोड़कर रखने वाली टेलीग्राम सेवा सोमवार को हमेशा के लिए बंद होने जा रही है। टेलीग्राम सेवा का संचालन करने वाली कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) ने बताया कि टेलीग्राम प्रणाली के जरिए आखिरी तार सोमवार 15 जुलाई तक पहुंचेगा। इसके बाद गौरवशाली इतिहास रखने वाली यह सेवा इतिहास के पन्नों तथा संग्रहालयों तक ही सिमट कर रह जाएगी। 

तार सेवा ऐसे समय पर बंद होने जा रही है जहां बड़े शहरों में तो इंटरनेट जैसे सूचना संप्रेषण के तीव्र विकल्प मौजूद हैं, वहीं इसके बंद होने का विरोध करने वालों का मानना है कि अब भी दूरदराज के कई इलाके ऐसे हैं जहां अब भी इसकी बेहद जरूरत है। बीएसएनएल का कहना है कि उसे तार सेवा की वजह से सालाना 300 से 400 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। तार सेवा भारत का पुराना संचार माध्यम है। देश का पहला तार 5 नवंबर 1850 को तत्कालीन कलकत्ता से 50 किलोमीटर दूर स्थित डायमंड हार्बर के बीच भेजा गया था और इसके पांच वर्ष बाद इस तीव्र संचार माध्यम को आम जनता के लिए खोल दिया गया।

अंग्रेजों की सत्ता भारत में सिर्फ तार सेवा की वजह से ही कायम रह सकी क्योंकि जब-जब इसे युद्धों का सामना करना पड़ा तो यह संदेश पहुंचाने की अपनी महारत के बल पर अपने शत्रुओं से कई कदम आगे थी। भारत में जब 1857 में पहला स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ तो मेरठ से चले क्रांतिकारी सिपाहियों के रवाना होने की सूचना पहले ही तार के जरिए दिल्ली के लोथियान रोड स्थित तारघर पहुंच गई थी।

टेलीग्राम सेवा शुरू होने पर आगरा एशिया का सबसे बडा ट्रांजिट दफ्तर था। अमरीकी वैज्ञानिक सैमुअल मोर्स ने वर्ष 1837 में मोर्स टेलीग्राफ का पेटेंट कराया था। मोर्स तथा उनके सहायक अल्फ्रेड वेल ने इसके बाद मिलकर एक ऐसी नई भाषा ईजाद की जिसके जरिए तमाम संदेश बस डाट और डेश के जरिए टेलीग्राफ मशीन पर भेजे जा सके।

मशीन पर जल्दी से होने वाली `टक` की आवाज को डॉट कहा गया और इसमें विलंब को डेश। तीन डॉट से मिलकर अंग्रेजी का अक्षर `एस` बनता है और तीन डेश से `ओ`। इस तरह से संकट में फंसे जहाज सिर्फ डॉट डॉट डॉट,डेश डेश डेश तथा डॉट डॉट डॉट भेजकर मदद बुला सकते थे।


जर्मन वैज्ञानिक वर्नर वोन साइमन्स ने एक नए किस्म के टेलीग्राफ की खोज की थी जिसमें सही अक्षर को चलाने के लिए बस मशीन का डायल घुमाना होता था। साइमन्स बंधुओं ने वर्ष 1870 में यूरोप तथा भारत को 11 हजार किलोमीटर लंबी टेलीग्राफ लाइन से जोड़ दिया जो चार देशों से होकर गुजरती थी। इससे भारत से इंग्लैंड तक महज तीस मिनटों में संदेश पहुंचाना संभव हो सका तथा यह सेवा वर्ष 1931 में वायरलस टेलीग्राफ के आगमन तक काम करती रही। टेलीग्राम सेवा अपने समय में इतनी सटीक होती थी कि मोर्सकोड ऑपरेटर बनने के लिए एक वर्ष की कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना होता था जिसमें से आठ महीने अंग्रेजी मोर्स कोड तथा चार महीने हिंदी मोर्स कोड के लिए होते थे।

टेलीग्राम दफ्तर में एक चार्ट मौजूद रहता था जिसपर तमाम सामान्य संदेशों के लिए एक विशेष नंबर लिखा रहता था। ग्राहक को वह नंबर ऑपरेटर को बताना होता था और संदेश महज कुछ ही समय में अपने गंतव्य तक पहुंच जाता था। टेलीग्राम ने सिर्फ समाज, सेना तथा सरकार को ही अपना योगदान नहीं दिया, बल्कि प्रेस जगत भी फैक्स तथा इंटरनेट के आगमन से पहले तार विभाग की सहायता पर ही निर्भर था।

रायटर संवाद समिति के जनक पाल जूलियस रायटर यूरोप में पहले उद्यमी थे जिन्होंने स्टाक एक्सचेंज के आंकड़ों को मंगाने के लिए टेलीग्राफ सेवा का इस्तेमाल करना शुरू किया था। भारत में तमाम महत्वपूर्ण अधिवेशनों तथा बैठकों के स्थल पर तार विभाग की विशेष चौकी बनाई जाती थी जहां से संवाददाता अपने कार्यालय को तार के जरिए खबरें भेज सकते थे। 

Sunday 5 May 2013

क्लाउड कंप्यूटिंग एक अच्छी तकनीक


Prem Prkash : कंप्यूटिंग प्रोसेसिंग को और अधिक कारगर बनाने की दिशा में क्लाउड कंप्यूटिंग एक अच्छी पहल है। क्लाउड कंप्यूटिंग एक ऐसी तकनीक और सुविधा है, जिसके द्वारा कंप्यूटर की प्रोसेसिंग पावर को काफी बढ़ाया जा सकता है, वह भी इंफ्रास्ट्रक्चर में अतिरिक्त इन्वेस्ट किए बिना। इसे इस तरह समझिए। आपके कंप्यूटर की क्षमता तो सीमित होती है। मान लीजिए कंप्यूटिंग से संबंधित किसी काम को करने के लिए अतिरिक्त प्रोसेसिंग पावर या स्टोरेज की जरूरत है, लेकिन आपका कंप्यूटर इसके अनुरूप नहीं है। इसका मतलब है कि आपको अपने कंप्यूटर की क्षमता को बढ़ाना होगा यानी इंफ्रास्ट्रक्चर पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ। यहीं पर क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक का फायदा उठाया जा सकता है।
क्लाउड कंप्यूटिंग कस्टमर्स अपनी जरूरत के अनुसार किसी थर्ड पार्टी के कंप्यूटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग कर सकता है। सर्विस प्रोवाइडर्स के रिसोर्सेज को आप घर बैठे सर्विस के रूप में उपयोग कर सकते हैं और बदले में इसके लिए आप थर्ड पार्टी को इसका चार्ज देते हैं। यह कॉन्सेप्ट ठीक उसी प्रकार हुआ, जैसे हम अपनी जरूरत के हिसाब से इलेक्ट्रिसिटी का उपयोग करते हैं और अपने उपभोग के अनुसार बिल चुकाते हैं। जी हां, अब कंप्यूटिंग पावर भी किराए पर मिलने लगी है, जहां अपने इंफ्रास्ट्रक्चर में बिना किसी परिवर्तन के आप अतिरिक्त प्रोसेसिंग और सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं। है न कितने काम की तकनीक। यह सारा खेल इंटरनेट पर ही खेला जाता है। अपने कंप्यूटर में बिना किसी अतिरिक्त हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर को डाले आप हाई कैपेसिटी इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग कर सकते हैं। क्लाउड कंप्यूटिंग का कॉन्सेप्ट ही इंटरनेट पर आधारित है, जहां कंप्यूटर्स को जरूरत के अनुसार शेयर्ड रिसोर्स उपलब्ध कराया जाता है।
आप अपने लोकल कंप्यूटर द्वारा ही इंटरनेट पर इन सारी सुविधाओं का लाभ उठाते रहते हैं। ऐसा लगता है कि वे सारे प्रोग्राम्स आपके अपने कंप्यूटर में ही इंस्टाल हों, जबकि वास्तव में डाटा और सॉफ्टवेयर सर्वर में स्टोर रहता है और उसे हम एक्सेस करते रहते हैं। इस प्रकार अपने कंप्यूटर की सीमित क्षमता होने के बावजूद आप सर्विस प्रोवाइडर्स द्वारा उपलब्ध करवाई गई उच्च तकनीकों जैसे प्रोसेसिंग पावर (सीपीयू/मैमरी), हाई स्टोरेज, डाटा ट्रांसफर, इनपुट-आउटपुट रिक्वेस्ट आदि का उपयोग अपनी जरूरत के अनुसार कर सकते हैं। छोटे और मंझोले स्तर की कंपनियों के लिए तो यह सुविधा काफी काम की है। इंफ्रास्ट्रक्चर में बिना अतिरिक्त इन्वेस्ट किए उच्च कंप्यूटिंग पावर का उपयोग किया जा सकता है।
आर्किटेक्चर

क्लाउड कंप्यूटिंग आर्किटेक्चर के दो मुख्य कम्पोनेंट्स होते हैं फ्रंट एंड और बैक एंड। फ्रंट एंड वह पार्ट होता है, जो यूजर द्वारा देखा जा सकता है, जैसे वेब ब्राउजर जिसकी सहायता से हम ‘क्लाउड’ को एक्सेस करते हैं। बैक एंड ‘क्लाउड’ होता है, जिसके अंतर्गत क्लाउड कंप्यूटिंग से जुड़े पार्ट्स जैसे सर्वर, डाटा स्टोरेज, डाटा सेंटर आदि आते हैं। हम फ्रंट एंड द्वारा बैक एंड की सुविधाओं को एक्सेस कर सकते हैं।

कॉस्ट

सबसे बड़ा फायदा है कॉस्ट सेविंग। इंफ्रास्ट्रक्चर में होने वाली अतिरिक्त लागत से हम बच जाते हैं।

अपडेट

अपने लोकल कंप्यूटर्स पर बिना इंस्टॉल और डाउन लोड किए ही आप सर्वर पर सभी प्रोग्राम्स को एक्सेस  कर सकते हैं। ऐसे में आपको सॉफ्टवेयर को अपडेट करने की टेंशन नहीं रहती। मेंटेनेंस भी काफी आसान हो जाती है।

लोकेशन इंडिपेंडेस

वेब ब्राउडर की सहायता से किसी भी सिस्टम और कहीं से भी आप तमाम फायदों और सुविधाओं को एक्सेस कर सकते हैं। बस इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध हो और आप कहीं से भी अपना काम कर सकते हैं। गूगल, आईबीएम, माइक्रोसॉफ्ट आदि प्रमुख क्लाउड कंप्यूटिंग सर्विस प्रोवाइडर्स हैं।

Monday 29 April 2013

इंटरनेट : दोधारी तलवार

इंटरनेट पर ज्ञान विज्ञान का विपुल भंडार है। कभी समंदर से सीप को ढंढ़ निकालना मुश्किल काम रहा होगा मगर इंटरनेट पर ज्ञान के समुद्र में अपने मतलब का मोती ढूंढना लाइब्रेरी में किताब छांटने से भी आसान है। यह वजह है कि बच्चे पढ़ाई के दौरान कोई जरूरत पड़ती है तो इधर-उधर किसी से पूछने की बजाय इंटरनेट की शरण मं जाते हैं। वेब गुरु भी है और दोस्त भी। आनलाइन इनसाइक्लोपीडिया पर तो सब कुछ हाजिर है। विकिपीडिया भी मदद के लिए तत्पर है। जरूरत इस बात की है कि आपको सही और सटीक जानकारी मिले। ऐसे में अभिभावकों को सतर्क रहना होगा क्योंकि कई बार गलत जानकारी या पुरानी सूचना मिल जाती है। अगर यह अपडेट है तो ठीक, नहीं तो किस काम का। क्योंकि दुनिया तो लगातार बदल रही है। कई बार कई साइटें अपडेट नहीं होती और महीनों पुरानी सूचनाएं ही देती रहती हैं।
वर्ल्ड वाइड वेब पर ऐसी बहुत सारी जानकारी मौजूद है जिसे आप कभी भूल जाते हैं या फिर आप सोचते रहते हैं कि इसका सही जवाब या फिर सही जानकारी क्या होगी? कई बार बच्चों को नई जानकारियां देने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल किया जाता है। इंटरनेट बच्चे को होमवर्क या प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए भी अच्छी जानकारी देता है। कई तरह के प्रश्न या पहेली को सुलझाने में इंटरनेट काफी मददगार है। बच्चे चाहें तो इस पर पढ़ सकते हैं या गेम्स भी खेल सकते हैं। इनसाइक्लोपीडिया डॉट कॉम और गूगल के सर्च इंजन पर हर तरह की सूचनाएं उपलब्ध हैं।अगर आप इंटरनेट से कोई जानकारी डाउनलोड कर रहे हैं तो एक बार क्रास चेक जरूर कीजिए क्योंकि कई साइट ऐसी है जिस पर कुछ गलत जानकारी या फिर कम जानकारी होती है। इस वजह से कई लोगों को संदेह भी होता है। कई लोगों को बच्चों के होमवर्क करने में भी थोड़ी मुश्किल आती है। ऐसे में आप इंटरनेट से मदद ले सकते हैं। ऐसी बहुत सारी साइटें हैं जैसे फैक्ट मांसटर डॉट कॉम पर एटलस, शब्दकोश और इन्साइक्लोपिडिया मौजूद है। कुछ और भी ऐसी साइटें हैं जिनसे आप अपने काम में मदद ले सकते हैं।
अगर आप इन साइटों या वेब वर्ल्ड से अपनी जानकारी नहीं हासिल कर पा रहे हैं तो यहां समय बर्बाद करने से बेहतर है आप दूसरे स्रोत जैसे लाइब्रेरी की मदद ले सकते हैं। अगर आप इंटरनेट पर कुछ मस्ती करना चाहते हैं तो फिर कुछ गेम खेलिए, मिस्ट्री सुलझाइए और अपने दिमाग को थोड़ा रिलैक्स कीजिए।आजकल युवाओं का पहली पसंद नेट सर्फिंग हो गई है। इंटरनेट का पूरी तरह इस्तेमाल करना वे सीख गए हैं। एक तरफ जहां इंटरनेट उनके लिए मार्डन टीचर का काम कर रहा है वहीं दूसरी तरफ नौकरी से लेकर शादी तक की जानकारी अब इंटरनेट पर उपलब्ध है। चाहे युवा हो या बच्चे हर किसी के हजारों सवालों का जवाब इंटरनेट पर मौजूद है। चाहे वह सवाल किसी विषय पर हो, स्वास्थ्य संबंधी हो, कॅरियर संबंधी हो, किसी भी सवाल के जवाब के लिए लोग इंटरनेट की शरण में जा रहे हैं।महानगरों में एक तरफ जहां व्यस्तता बढ़ी है वहीं दूसरी तरफ इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा है। लोग भागदौड़ से बचने के लिए सारी जानकारी इंटरनेट से ही हासिल करते हैं। याहू, गूगल, रेडिफ जैसे कई सर्चइंजन का डेटा बैंक काफी बड़ा है। यह समय-समय पर अपडेट भी होता है ताकि आपको नई और सही जानकारी मिल सके। यह अलादीन के चिराग की तरह है। कोई इसका सही इस्तेमाल भी कर सकता है और गलत भी। यह दोधारी तलवार की तरह है। इसका सदुपयोग करना सीखिए और अपने जीवन में आगे बढ़िए।


Friday 19 April 2013

इंटरनेट के व्यावहारिक खतरे !!

इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स का विस्तार जहां लोगों को जोड़ रहा है, वहीं संचार की विकसित होती यह नई संस्कृति अपने साथ कई समस्याएं भी ला रही हैं। भारत इसका अपवाद नहीं है, जहां तकनीक का विस्तार तो बहुत तेजी से हो रहा है, पर उसका प्रयोग किस तरह होना है, यह अभी सीखा जाना है। एक नई चुनौती के साथ इसका सबसे अधिक असर बच्चों पर हो रहा है। अमूमन खेल के मैदान पर होने वाली बच्चों की शरारतें- जैसे एक-दूसरे को चिढ़ाना या परेशान करना- सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिये अब आभासी दुनिया में देखी जा सकती हैं। फेसबुक, ऑरकुट या अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल दोधारी तलवार की तरह होता है, इसलिए यदि सावधानी नहीं बरती जाए, तो इससे बच्चों को नुकसान हो सकता है। सावधानी नहीं बरतने से बच्चे अक्सर 'साइबर बुलिंग' का शिकार हो जाते हैं। साइबर बुलिंग से मतलब किसी वयस्क या बच्चे को किसी अन्य बच्चे या वयस्क द्वारा डिजिटल प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल (इंटरनेट या मोबाइल आदि) कर प्रताड़ित या मानसिक रूप से परेशान किए जाने से है। टेलीनॉर द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, 2012 तक भारत में चार करोड़ बच्चे इंटरनेट पर सक्रिय थे, जो 2017 में तीन गुने से भी ज्यादा बढ़कर 13 करोड़ हो जाएंगे। ये आंकड़े जहां भविष्य के प्रति उम्मीद जगाते हैं, वहीं कुछ सवाल भी खड़े करते हैं। आखिर इंटरनेट पर जो बच्चे हैं, वे साइबर दुनिया में कितने सुरक्षित हैं, उन्हें इंटरनेट के सलीकों के बारे में कितनी जानकारी है? आंकड़े इसकी अच्छी तस्वीर नहीं पेश कर रहे हैं। माइक्रोसॉफ्ट द्वारा जारी किए गए ग्लोबल यूथ ऑनलाइन सर्वे के मुताबिक, साइबर बुलिंग का शिकार होने के मामले में भारत के बच्चे दुनिया में तीसरे नंबर (53 प्रतिशत) पर हैं। पहले दो स्थान पर क्रमशः चीन (70 प्रतिशत) और सिंगापुर (58 प्रतिशत) हैं। जागरूकता के अभाव में बच्चों को यह पता नहीं होता कि साइबर बुलिंग का शिकार होने पर उन्हें क्या करना चाहिए। नतीजतन वे अकेलेपन और अवसाद का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। वास्तव में तकनीकी रूप से भारत संक्रमण काल से गुजर रहा है, जिसमें युवा पीढ़ी पिछली पीढ़ी की तुलना में कहीं अधिक साइबर एक्टिव है। अभिभावक मानते हैं कि प्रतिस्पर्धी दुनिया में बच्चों को साइबर दुनिया से जोड़ना उनके भविष्य के लिहाज से जरूरी है। वे बच्चों को इंटरनेट के हवाले कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं, जबकि उन्हें यहां भी सतर्कता बरतने की जरूरत है। व्यापक रूप से देखा जाए, तो अब समय आ गया है कि नैतिक शिक्षा के साथ इंटरनेट आधारित व्यवहार और शिष्टाचार को भी स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए, ताकि बच्चों को पता चल सके कि सम्मान और गरिमा के साथ इंटरनेट पर कैसे व्यवहार किया जाना चाहिए, या उनका एक छोटा-सा मजाक दूसरे पर कितना भारी पड़ सकता है। समस्या का कानूनी पहलू भी खासा उत्साहजनक नहीं है। भारत का साइबर बुलिंग कानून बच्चों और वयस्कों में कोई अंतर नहीं करता। इसमें बच्चों के लिए कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है। जबकि बाल मस्तिष्क पर साइबर बुलिंग का गंभीर प्रभाव पड़ता है, जो उन्हें नकारात्मक भी बना सकता है। भारत में 2000 में सूचना प्रोद्यौगिकी कानून बना। वर्ष 2008 में इसमें कुछ संशोधन किए गए। इसकी धारा 66-ए में साइबर बुलिंग से संबंधित मामले आते हैं, जिसे अब दंडनीय अपराध बना दिया गया है। पर बच्चों के साथ होने वाली ऐसी घटनाओं को अलग परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश बच्चों को साइबर बुलिंग से बचाने के लिए हेल्पलाइन सेवा उपलब्ध कराते हैं, पर भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। अगले तीन वर्ष में भारत दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा इंटरनेट उपभोक्ताओं को जोड़ेगा और देश की कुल जनसंख्या का 28 प्रतिशत हिस्सा इंटरनेट से जुड़ा होगा, जो चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा जनसंख्या समूह होगा। पर हम साइबर दुनिया को अपने बच्चों के लिए सुरक्षित बना पाएंगे इसका उत्तर मिलना अभी बाकी है।